पालकों की प्रतिक्रियाएं

यूरोप से प्रतिक्रिया

आनापान के लाभों के बारे में पालकों से प्रतिक्रिया आयी है और उससे पता चलता है कि आनापान के सकारात्मक परिणाम हैं, विशेष रूप से समस्याओं का मुकाबला, बेहतर व्यवहार, कम आक्रामकता और कम टी.व्ही. देखना | बच्चे खुद बताते हैं कि वे परीक्षाओं और तनावपूर्ण परिस्थितियों में पाठशाला में आनापान का उपयोग करते हैं | एक पालक ने बताया कि शिविर में भाग लेने के बाद उसके किशोर पुत्र का रवैया पूरी तरह से बदल गया था | पहले जो अलगाव लगता था, वो एक सम्मान और निकटता में बदल गया, जब उसकी समझ में आया कि उसकी मां केंद्र में क्या कर रही है | लेकिन, उससे भी अधिक, इस लड़के ने अपने स्वयं के अभ्यास के परिणामस्वरूप खुद के चरित्र को बेहतर करने के लिए "विशाल" बदलावों की शुरुआत की, जिसे उसने खुद वर्णन करना मुश्किल पाया | यह गहन लाभ हैं जो युवाओं के लिए शिविरों का महत्व दर्शाते हैं |


इंग्लैंड के विपश्यना केंद्र में लडके

म्यांमार से प्रतिक्रिया

एक किशोर के पालकों ने उनकी ख़ुशी और आनंद व्यक्त किया - उसने यांगों में धम्मजोति ध्यान केंद्र में एक शिविर में भाग लिया था | "हमने ध्यान हॉल में आनापान-सति अभ्यास करने वाले बच्चों को देखा है | वह एक महान दृश्य था | किशोर बच्चों को अपने पालकों की देखा देखी होटलों में जाने का विशिष रूप से आकर्षण होता है, जहाँ वे बातों में, धुम्रपान या नशा कर व्यर्थ ही समय बर्बाद करते हैं | हमारे बेटे ने खुद को इस खतरनाक रास्ते पर चलने से बचा लिया है | आनापान सति शिविर से किशोरों को गलत रास्ते से बचने में और गंभीरता से जीवन जीने में मदद मिलती है | हमें आशा है कि ऐसे शिविर देश भर में आयोजित किये जायेंगे |”


यांगों, धम्मजोति केंद्र में रचनात्मक गतिविधियों का समय

नेट-ऑ-सान, म्यांमार यह एक अपराधी बच्चों के लिए जो सजा भुगत रहें हैं, एक प्रशिक्षण केंद्र है | सामाजिक सुरक्षा मंत्रालय के अन्य प्रशिक्षण केंन्द्रों से भी बच्चों को नेट-ऑ-सान में भेजा जाता है, अगर वे काबू से बाहर हों या १८ साल की आयु के ऊपर | नेट-ऑ-सान के एक शिक्षक का कहना है “निश्चित रूप से हम बच्चों में फर्क देख सकते हैं | काबा ए प्रशिक्षण केंद्र से आनेवाले बच्चों को संभालना आसान है, वहाँ आनापान - सांस के प्रति सजगता रखने के - शिविर लगते है | वे नेट-ऑ-सान के बच्चों की तुलना में अधिक विनम्र भी होते हैं – उन बच्चों को ऐसे शिविर में भाग लेने का मौका नहीं मिला | मुझे ख़ुशी है की अब नेट-ऑ-सान के बच्चों को भी इस प्रकार के शिविर में भाग लेने का अवसर मिलेगा और वे उसका लाभ ले सकेंगे | हमें आशा है कि सभी बच्चे आगे जा कर अच्छे और जिम्मेदार नागरिक बनेंगे | इस शिविर से निश्चित रूप से लाभ होगा |”

म्यांमार के ओक-फ़ो शहर में दो बाल शिविर हो चुके हैं| प्रशासकीय शालाओं के बच्चों ने इन शिविरों में भाग लिया | एक शिक्षक का कहना है “बच्चे ज्यादा सचेत और होशियार हो जाते हैं | पढाई और अन्य गतिविधियों में सुधार आता है | निश्चित रूप से उन में सुधार होता है | उन के चरित्र में सकारात्मक बदलाव आते हैं | बच्चों के लिए आनापान (सांस के प्रति सजगता) शिविरों का नियमित रूप से आयोजन होना चाहिए |” अब ओक-फ़ो में बच्चों के लिए रविवार को सामूहिक साधना का आयोजन भी होने लगा है |


म्यांमार में गैर-केंद्र शिविर

एक पिता की संकोच भरी मुस्कान:

मेरी ८ साल की लड़की ने एक दिवसीय आनापान शिविर में भाग लिया | एक दिन हमेशा की तरह मैं गुस्से में मन के विरुद्ध किसी बात के होने को ले कर चिल्लाचिल्ली कर रहा था | मेरी बेटी दौड़ती हुई आयी और कहने लगी “पापा जी ! कृपया गाली ना दें | यह आपके लिए हानिकारक है – ध्यान केंद्र पर मेरे बाल शिविर शिक्षक ने ऐसा बताया है | और गोयन्का जी ने भी कहा है कि अगर आपको कोई गाली दे तो क्या आपको अच्छा लगेगा ? नहीं, आपको अच्छा नहीं लगेगा ! इस लिए आप दूसरों पर न चिल्लायें | प्लीज पापा जी – दूसरों को गुस्से से गाली ना दें क्योंकि उन्हें बुरा लगेगा |”

मैं हक्काबक्का हो गया और आश्चर्य से सोचने लगा “मेरी छोटी सी बेटी सही और गलत समझती है | बहुत खूब !” मैंने संकोच और आनंद मिश्रित मुस्कान के साथ उससे कहा “ठीक है ! मैं तुम्हारी सलाह जरूर मानूंगा क्योंकि तुम सही हो | भविष्य में मैं चिल्लाना या गाली देना बंद कर दूंगा |” मैंने सोचा अब मुझे सजग रहना होगा – मुझे खुद पर शर्म आ रही थी | मैं मुस्कुराया |

एक लड़के के पिता शराबी थे | उसके चाचा उसे यांगों, धम्मजोति में एक दिवसीय बाल शिविर के लिए ले कर आये | गोयन्का जी की सूचनाओं के बाद बच्चों के तीन परामर्श सत्र हुए जहाँ उत्तम पुरुषों के गुण और मार्ग, नैतिकता और सांस के प्रति सजगता के बारे में चर्चा हुई | फिर साधना सत्र के बाद मंगल मैत्री के साथ शिविर संपन्न हुआ |

जब लड़का घर पहुंचा, वह सहमते हुए अपने पिता के पास गया और बोला – “ पिताजी, हमने आज सांस के प्रति सजग रहने और शील पालन का अभ्यास किया | हमने सीखा कि नशा करना हानिकारक है | अगर हम नशा करते हैं तो हम उसके गुलाम हो जाते हैं और इससे शील पालन में बाधा आती है | यह हमारे लिए हर प्रकार से हानिकारक है और हम कम उम्र में ही रोग का शिकार हो कर मृत्यु को प्राप्त हो सकते हैं | हमारे बाल शिविर शिक्षक ने यह भी बताया कि अपने पालकों का ऋण चुकाने का सबसे अच्छा उपाय है कि उन्हें एक आदर्श जीवन जीना सिखाए | प्लीज़ शराब ना पियें |”

उसके पिता आश्चर्यचकित थे और खुश भी कि उनका बेटा शील पालन और प्रज्ञा में उनसे भी आगे निकल गया |

“मैं अब शराब नहीं पियूँगा, वचन देता हूँ ! तुम्हारी माँ को भी यह पसंद नहीं है और ना ही संतों को |”


म्यानमर में लड़कों का चर्चा सत्र

यांगों धम्मजोति में एक दिवसीय बाल शिविर में भाग लेने के बाद, अपने बच्चे में हुए बदलाव को देख कर एक माँ ने उसकी ख़ुशी और आश्चर्य व्यक्त किया | उसके लडके ने ९ वर्ष की उम्र में एक दिवसीय बाल शिविर में भाग लिया था | उसे रोज ध्यान करते देख वह सचमुच ही बहुत खुश और आश्चर्यचकित थी | उसने महसूस किया कि अब उसका बेटा और सब के साथ ज्यादा विनम्र और पाठशाला में पढाई में ज्यादा जागरूक रहने लगा | उसने कहा कि उसे इतनी कम उम्र में या अब तक कभी भी आनापान सीखने या ऐसे शिविर में भाग लेने का कोई मौका नहीं मिला | उसने यह भी कहा कि मैं अपने बेटे में आये सकारात्मक बदलाव से बहुत प्रभावित हूँ और खुद एक दस दिवसीय ध्यान शिविर में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित हुई हूँ |”

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पालक

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